विकास रोहरा कि कलम ✍️ से सच बोलने की सज़ा

*सच बोलने की सज़ा*

 

*कभी सोचा था कि जिस समाज की भलाई के लिए, लोगों को ठगों और नकली बाबाओं के चंगुल से बचाने के लिए आवाज़ उठाएंगे — वही समाज हमें कटघरे में खड़ा कर देगा ?*

 

*मैंने एक झूठे बाबा की असलियत उजागर की। लोगों को बताया कि ये धोखा है, फरेब है। अगर मैं चुप रहता, तो न जाने कितने घर बर्बाद हो जाते, कितनी माँ-बहनों के गहने बिक जाते, कितने बुजुर्ग अपनी जमा पूंजी खो बैठते।* 

 

*लेकिन क्या मिला ?*

*उनके अंधभक्तों ने मेरे खिलाफ झूठी FIR करवाई।*

*56 दिन जेल में रहा। बिना किसी अपराध के।*

*सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने सच कहा।*

 

*कितनों ने साथ दिया ?*

*कितनों ने हिम्मत दिखाई मेरे साथ खड़े होने की ?*

*बहुत कम… और कुछ ने तो साथ छोड़ भी दिया।*

 

*आज सवाल करता हूँ इस समाज से —*

*क्या सच बोलना गुनाह है ?*

*क्या किसी की आँखें खोलना जुर्म है ?*

*क्या जनता की भलाई चाहना अपराध है ?*

 

*लेकिन मैं झुकूँगा नहीं।*

*मैं फिर भी सच बोलूँगा।*

*क्योंकि सच चाहे कितना भी दबा दिया जाए, एक दिन ज़रूर सामने आता है।*

 

*जो आज मुझे गुनहगार मान रहे हैं, कल वही लोग मेरा हौसला सलाम करेंगे।*

*मैं उन लोगों की तरह नहीं, जो भीड़ के डर से अपनी ज़ुबान बंद कर लें।*

 

*तुम भी सोचो…*

*अगर कल तुम्हारे घर में ऐसा धोखा हो जाए, तो कौन खड़ा होगा?*

*मैं तो फिर भी लड़ रहा था।*

 

*सत्य की लड़ाई जारी रहेगी।*

*और जो साथ चलना चाहें — दरवाज़ा खुला है।*

 

*जय सत्य। जय इंसानियत।*