*सच बोलने की सज़ा*
*कभी सोचा था कि जिस समाज की भलाई के लिए, लोगों को ठगों और नकली बाबाओं के चंगुल से बचाने के लिए आवाज़ उठाएंगे — वही समाज हमें कटघरे में खड़ा कर देगा ?*
*मैंने एक झूठे बाबा की असलियत उजागर की। लोगों को बताया कि ये धोखा है, फरेब है। अगर मैं चुप रहता, तो न जाने कितने घर बर्बाद हो जाते, कितनी माँ-बहनों के गहने बिक जाते, कितने बुजुर्ग अपनी जमा पूंजी खो बैठते।*
*लेकिन क्या मिला ?*
*उनके अंधभक्तों ने मेरे खिलाफ झूठी FIR करवाई।*
*56 दिन जेल में रहा। बिना किसी अपराध के।*
*सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने सच कहा।*
*कितनों ने साथ दिया ?*
*कितनों ने हिम्मत दिखाई मेरे साथ खड़े होने की ?*
*बहुत कम… और कुछ ने तो साथ छोड़ भी दिया।*
*आज सवाल करता हूँ इस समाज से —*
*क्या सच बोलना गुनाह है ?*
*क्या किसी की आँखें खोलना जुर्म है ?*
*क्या जनता की भलाई चाहना अपराध है ?*
*लेकिन मैं झुकूँगा नहीं।*
*मैं फिर भी सच बोलूँगा।*
*क्योंकि सच चाहे कितना भी दबा दिया जाए, एक दिन ज़रूर सामने आता है।*
*जो आज मुझे गुनहगार मान रहे हैं, कल वही लोग मेरा हौसला सलाम करेंगे।*
*मैं उन लोगों की तरह नहीं, जो भीड़ के डर से अपनी ज़ुबान बंद कर लें।*
*तुम भी सोचो…*
*अगर कल तुम्हारे घर में ऐसा धोखा हो जाए, तो कौन खड़ा होगा?*
*मैं तो फिर भी लड़ रहा था।*
*सत्य की लड़ाई जारी रहेगी।*
*और जो साथ चलना चाहें — दरवाज़ा खुला है।*
*जय सत्य। जय इंसानियत।*